Water Crisis In Bengaluru in Hindi, Bengaluru में पानी की चुनौतियों का समझौता। Bengaluru में पानी की कठिनाइयों का समाधान। Bengaluru में पानी की कमी का कारण और effects | Bengaluru में पानी की कठिनाइ in Hindi
Bengaluru में पानी की कमी का कारण और effects

बेंगलुरु का पानी खत्म हो चुका है। प्रॉब्लम इतना सीरियस है कि लोग बेंगलुरु छोड़कर जा रहे हैं। ग्राउंड वाटर जो पहले 100 फीट में भी मिल जाता था अब 1800 फीट खोदने पर भी नहीं मिलता। बेंगलुरु की कहानी पूरे देश के लिए एक वार्निंग है कि अगर हमने इस क्राइसिस को टैकल नहीं किया तो देश का फ्यूचर खतरे में होगा। यह टॉपिक काफी सीरियस है। हां, आपको लग रहा होगा इसे स्किप कर दें। हमारे पास आज पानी है। लेकिन आज पानी होना यह गारंटी नहीं है कि हमारे लिए कल भी पानी अवेल होगा। कल शायद आपको सिर्फ एक ही घंटा पानी मिले और वाटर कट्स का सामना करना पड़े। इसीलिए इस।
आप अपने आपको को और भारत को भी एक वाटर क्राइसिस से बचा पाए चैप्टर वन हाउ बैड इज द सिचुएशन। बेंगलुरु भारत की सिलिकॉन वैली स्टार्टअप और आईटी हब है। 2024 में ऐसी न्यूज़ आने लगी कि बेंगलुरु इज रनिंग आउट ऑफ वटर प्रॉब्लम। यह है कि बेंगलुरु का वाटर सप्लाई काफी ब्रोकन है। बेंगलुरु के 70 प्र वाटर नीड्स कावेरी नदी से आते हैं और बाकी के वाटर नीड्स ग्राउंड वाटर पंप करके आते हैं। और प्रॉब्लम यह है कि ग्राउंड से पानी निकल तो रहा है लेकिन ग्राउंड में पानी वापस नहीं जा रहा। बेंगलुरु की ये इमेज काफी वायरल हो चुकी है।
बेंगलुरु में अर्बनाइजेशन यानी कॉंक्रीट इजेशन बिल्डिंग्स रोड्स की संख्या 1000% बढ़ गई। लेकिन वाटर बॉडीज की संख्या ऑलमोस्ट 80 पर कम हो गई। हमने लास्ट ईयर अर्बन फ्लड पर एक वीडियो बनाया था। भारत के मेजर शहर हर साल मानसून में फ्लड होते हैं और यह एक मैन मेड डिजास्टर है। ऑन द अदर हैंड बेंगलुरु में जो वाटर क्राइसिस हो रहा है वो भी एक कंप्लीट मैन मेड डिजास्टर है। क्योंकि शहर डेवलप करने के लिए बेंगलुरु मास्टर प्लान बनाया गया। नए बिल्डिंग्स बने आईटी इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए आईटी पार्क्स बने। लेकिन लैंड तो लिमिटेड है। तो यह सब हुआ कैसे वटर।
बॉडीज को रिक्लेम करके पेड़ों को काट के जब भी एक एरिया डेवलप होता है पॉपुलेशन बढ़ता है तो फिर वाटर नीड्स भी बढ़ती है। लेकिन इसके बारे में प्लानिंग नहीं होती। इसके बारे में कोई चर्चा नहीं होती। जब एक बिल्डिंग को कं कंट्रक्शन की परमिशन मिलती है तो वहां के रेजिडेंट्स को पानी मिलेगा। कहां से बाय लॉ तो कहा गया है कि बेंगलुरु में रेन वाटर हार्वेस्टिंग मैंडेटरी है। लेकिन अगर ऑन ग्राउंड ये लॉ इंप्लीमेंट होता तो शायद आज बेंगलुरु में ये प्रॉब्लम ना होता। और बेंगलुरु का 70 प्र पानी कावेरी नदी से आता है तो वो मॉनसूंस पर काफी डिपेंडेंट होता है। अगर मॉनसूंस अच्छे हुए तो रिवर में पानी होता है।
लेकिन अगर मॉनसूंस डिफिशिएंट हुए या फिर ड्रॉट की संभावना है तो इसका डायरेक्ट इंपैक्ट बेंगलुरु और उसके निवासियों पर होगा। बेंगलुरु की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही है कि एसिस्टिंग वटर बॉडीज को एंक्रोच किया गया है। लेक्स में मिट्टी भर के उन्हें प्रॉपर्टी डेवलपमेंट के लिए यूज किया गया है। इन सब की वजह से ग्राउंड वाटर पर भी असर हुआ है और एक्सेस मानसूंस के समय फ्लड भी होता है। चैप्टर टू इंडियाज वटर फ्यूचर 2018 में नीति आयोग ने कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स निकाला जिसमें उन्होंने भारत के वाटर रिसोर्सेस उनके अवेलेबिलिटी।
वॉटर स्कर सिटी पर एक वटर इंडेक्स बनाया। उस रिपोर्ट के पहले ही पेज में यह लिखा है कि कि 60 करोड़ लोग एक्सट्रीम वटर स्ट्रेस एरियाज में रहते हैं। हर साल 2 लाख लोगों की जाने जाती है क्योंकि उन्हें क्लीन और सेफ ड्रिंकिंग वाटर नहीं मिलता। और इस वाटर शॉर्टेज की वजह से हमें कितना नुकसान होता है पता है। 6 पर ऑफ आवर जीडीपी एंड दैट इज ह्यूज टू पुट थिंग्स इन पर्सपेक्टिव हम हर साल 2 पर ऑफ जीडीपी हेल्थ केयर पर खर्च करते हैं। एंड 3 ए 1/2 पर ऑफ जीडीपी एजुकेशन पर। और प्रॉब्लम यह है कि जैसे-जैसे भारत और बढ़ेगा हमारे वाटर नीड्स भी बढ़ेंगे। जैसे अपार्टमेंट्स।
बनेंगे। लोग ज्यादा पानी कंज्यूम करेंगे और इस सबके लिए भारत के पास कोई कंक्रीट प्लान नहीं है। नीति आयोग के कंपोजिट वटर मैनेजमेंट रिपोर्ट में यह ग्राफ बनाया था। आप जरा ध्यान से देखेंगे तो जिन स्टेट से गंगा नदी गुजरती है उन स्टेट्स ने सबसे कम वाटर मैनेजमेंट और प्रिपरेशन की है। इस वाटर स्कर सिटी का बहुत लेवल्स पर इंपैक्ट होता है। फॉर एग्जांपल बिना पानी के हम खेती कैसे करेंगे। सेम क्रॉप्स हर साल कैसे उगाए। लोगों को क्लीन पानी के नाम पर दूध ित पानी मिलता है जिससे हेल्थ प्रॉब्लम्स होते हैं और ओवरऑल क्वालिटी ऑफ लाइफ कम होती है। जो लोग वाटर टैंकर अफोर्ड कर सकते हैं।
उनकी बात अलग है लेकिन जिनके पास पैसा नहीं होता क्या उन्हें पानी मिलेगा व किस कंडीशन में मिलेगा क्या यह ड्रिंकिंग वाटर होगा हु नोज इन सारे मुद्दों पर विचार होना जरूरी है वाटर शॉर्टेज का फूड सिक्योरिटी से गहरा कनेक्शन है अनफॉर्चूनेटली भारत राइस और शुगर केन जैसे हाई वाटर इंटेंसिटी क्रॉप्स प्रोड्यूस करता है उन्हें एक्सपोर्ट करता है इनसे हम हमारी वाटर सिक्योरिटी को कंप्रोमाइज करते हैं ये सारे पॉइंट्स नीति आयोग के रिपोर्ट में तो है यानी हमारी सरकार को पता है बस इन पर एक्शन नहीं ली जाती अगर कोई पॉलिसी बनती भी है तो फिर वो ऑन ग्राउंड नहीं उतरती।
लेकिन जब तक इन मुद्दों पर बात नहीं होगी तब तक हम हमारा पानी दुनिया भर में एक्सपोर्ट करते रहेंगे। भारत में एक्सेस शुगर प्रोड्यूस होता है। शुगर के हम बफर स्टॉक्स रखते हैं और उसे एक्सपोर्ट भी करते हैं। इसलिए नहीं क्योंकि ये प्रॉफिटेबल है बट इसलिए क्योंकि ओवर प्रोडक्शन की वजह से प्राइसेस क्र हो सकते हैं। हम इतना एक्सेस शुगर केन प्रोड्यूस करते हैं कि उससे हम एथेनॉल प्रोड्यूस कर रहे हैं। भारत में 62 पर वाटर नीड्स ग्राउंड वाटर से आते हैं और वहां पर भी वाटर स्ट्रेस का इशू है। भारत आज भी मेजर्ली थर्मल पावर से चलता है और थर्मल।
पावर प्लांट्स हैवी वाटर कंज्यूमर्स होते हैं। यानी इस वटर शॉर्टेज की वजह से हमारे इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन पर भी इंपैक्ट होगा। हम हमारे पोटेंशियल से भी कम पावर प्रोड्यूस कर पाएंगे। चैप्टर थ्री सॉल्यूशंस टू द वाटर क्राइसिस। वाटर क्राइसिस और बेंगलुरु का सिचुएशन भारत के लिए एक वार्निंग साइन है। अभी समय है अभी सही कदम उठाओगे तो देश को बचा पाओगे।