India का Geography हमेशा के लिए बदल रहा है। Aravali Green Wall Project का लक्ष्य 1,400km लंबा और 5km चौड़ा green belt buffer बनाना है। Aravali Mountain range, across states of Haryana, Rajasthan, Gujarat, and Delhi. Aravali Green Wall Project in Hindi.
Aravali Green Wall Project in Hindi

कुछ प्रोजेक्ट्स ऐसे होते हैं जिनका इंपैक्ट आने वाले 100 200 300 या हो सके तो 1000 सालों तक भी रह सकता है। लेकिन फिर भी डे टू डे कॉन्टेक्स्ट के अंदर हम उनके बारे में बात नहीं करते। इनफैक्ट दुनिया कई बार ऐसे प्रोजेक्ट का मजाक भी बनाती है। ऐसा एक प्रोजेक्ट है अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट डेजर्ट फिकेशन एक ऐसा फेनोमेन है जिससे दुनिया के कई सारे देश जूझ रहे हैं। स्पेशली वो देश जहां पर वेस्टरली विंड्स रेगिस्थान के रेतों को अंदरूनी देश के भागों तक ले आती है।
इसका मतलब क्या मैंने कुछ सालों पहले एक वीडियो बनाई थी कि भारत देश के के अंदर इतनी धूल मिट्टी क्यों है बिलियंस लोगों ने उस वीडियो को बहुत पसंद किया और एक इंपॉर्टेंट फैक्टर जो मैंने मेंशन किया था उस वीडियो में वो ये था कि भारत के अंदर हैवी वेस्टर्न साइड से हवाएं आती है और ये हवाएं दूल मिट्टी कैरी करती है मिडिल ईस्ट से और हमारे थारा डेजर्ट के अंदर भी इसका इंपैक्ट होता है। प्रॉब्लम इसकी वजह से ये हो रही है कि साल दर साल ये जो रेगिस्तान की रेत है ये बढ़ते जा रही है अपने बॉर्डर्स को तोड़ते हुए और सेंट्रल इंडिया की तरफ बढ़ रही है। होने को तो ये एक नेचुरल फिनोमिना है लेकिन ह्यूमन सिविलाइजेशन के लिए बहुत बड़ी दिक्कत इंसान हमेशा नेचर को अपने।
हिसाब से ढालने की कोशिश करता है कभी सक्सेसफुल रहता है कभी नहीं। हजारों साल पहले भी दुनिया भर के अंदर बहुत अच्छे कैनाल सिस्टम्स बनाए गए थे। नदियों को पूरी तरीके से डायवर्ट करने के लिए फ्लड्स को रोकने के लिए हमारे देश में भी बहुत हजारों साल पुराने डम्स वगैरह हैं रिजर्वायर्स हैं। तो नेचर को अपने हिसाब से चेंज करना कोई नई बात नहीं है और सिमिलर चीज यहां पे करने की जरूरत है। डेजर्ट फिकेशन को रोकने के लिए यानी ये जो रेगिस्तान बढ़ रहा है इसको और आगे बढ़ने से रोकने के लिए। लेकिन ये क्यों किया जाए करने से हमारा क्या फायदा जरा समझते हैं।
दोस्तों, रेगिस्तान की जो रीत होती है ना वो बहुत ही ज्यादा फाइन और स्मूथ होती है और काफी ज्यादा पोरस। मेरा मतलब यह है कि इस रेत को अगर आप कंप्रेस भी करो तो ये चिपक कर जो है बहुत ही ज्यादा स्ट्रांग कोई पेस्ट की तरह नहीं बनती। आर ग्लास आपने देखा होगा वो काच का एक इंस्ट्रूमेंट होता है जिसके अंदर रेत भरी जाती है और टाइम गिना जाता है। वो आर ग्लास के अंदर रेत इसलिए डाली जाती है क्योंकि वो इतनी महिम होती है और वो एक साथ क्लंप नहीं होती।
इसके लिए वो एक बेस्ट एप्लीकेशन बनता है रेगिस्तानी रीत के लिए। लेकिन ये जो चीज है ये कई दिक्कत भी प्रोड्यूस करता है जैसे कि इसके अंदर अगर पानी डालोगे तो वो ठहरेगा नहीं चाहे आप कितना भी पानी डालो वो अंदर चले जाएगा। आप इसे कितना भी कंपैक्ट करो ये इतना लूज ही रहेगा कि ये हमेशा ढीला रहेगा। इसके लिए रेगिस्तान की रेज जो है वो हमेशा हल्की-फुल्की पाउडर की तरह रहती है और मिट्टी की तरह जो है क्ले की तरह हार्ड नहीं बनती। इसलिए यहां पर पानी के बॉडीज को दिक्कतें आती है। अगर ये रेत पहुंच जाए तो वहां पे खेती नहीं हो सकती क्योंकि ये पानी पकड़ ही नहीं सकती। और कई वेजिटेशन जो सर्वाइव करती है अच्छी मिट्टी के ऊपर जिसके अंदर मिनरल्स वगैरह होल्ड हो सके वो मिट्टी कभी भी रेत के साथ।
में रिप्लेस नहीं हो सकती और अगर ये रेगिस्तान आगे बढ़ता रहा हवाओ के साथ-साथ तो वो हमारे सेंट्रल इंडिया तक पहुंच जाएगा और ओबवियसली हजारों लाखों एकड़ जमीन जो एग्रीकल्चरल है उसको खत्म कर देगा जो फूड सिक्योरिटी पे भी रिस्क बन सकता है। अरावली ग्रीन प्रोजेक्ट ये चाहता है कि हम पानीपत से लेक पोरबंदर गुजरात के बीच में एक 5 किमी चौड़ी फॉरेस्ट की वॉल बनाए जहां पर कई सारे पेड़ लगाए जाएंगे कई सारे लेवल पर फॉरेस्टेशन किया जाएगा यानी ग्रीन झाड़ जंगल का बेल्ट बनाया जाएगा जो इस रेत को आगे बढ़ने से रोके और ये रोकेंगे कैसे जब फॉरेस्ट को लगाया जाता है यहां पर और ऐसे।
प्रजातियों को लगाया जाता है जो यहां पर फिर भी सस्टेन कर ले तो वो अपने रूट्स के जरिए मिट्टी को पकड़ना शुरू कर देती है और उनको कॉम्पेक्टली है इसके वजह से जब रीत आगे बढ़ रही होती है धीरे-धीरे हवा के साथ में वो इस लेवल के आगे नहीं नहीं बढ़ पाती या इस बेल्ट के आगे नहीं बढ़ पाती ये कोई नया फेनोमेन नहीं है गोबी डेजर्ट चाइना के अंदर ये चीज कुछ दशकों पहले की गई थी तब पूरी दुनिया ने चाइना का मजाक उड़ाया था लेकिन वो सक्सेसफुल हुए थे जिके बाद में ऐसे कई प्रोजेक्ट्स दुनिया भर में शुरू किए गए भारत भी उनमें से एक है गवर्नमेंट को उम्मीद ये है कि ये ना सिर्फ रेगिस्तान की रेत को आगे आने से रोकेगा लेकिन 2.5 बिलियन टंस ऑफ कार्बन जो एटमॉस्फियर में है उसको भी सोख लेगा साथ-साथ एक एरिया जो आसपास में मौजूद है वहां पे लैंड प्रा इसको भी कंट्रोल करेगा क्योंकि रीत आने की वजह से जमीनें कम होती जा रही थी और जमीनों की कीमत बढ़ रही थी इस वजह से कई लोग जो लाइवलीहुड पे लिए डिपेंड करते हैं खेत जमीन पर उनको ये बहुत ज्यादा बेनिफिशियल होगा सोशल इकोनॉमिक रिफॉर्म्स इसकी वजह से आ सकेंगे और डेवलपमेंट एक्टिविटीज करने के लिए पॉसिबल होगा ग्रीन कवर आने की वजह से जो वाइल्ड लाइफ भी है।
यहां पर वो भी प्रोटेक्ट होगी लेकिन जो एक बहुत बड़ा बेनिफिट होगा वो है पानी के हिसाब से बड़े लेवल पे अगर फॉरेस्टेशन कीय बेल्ट बनाने में हम सक्सेसफुल रहते हैं तो कई वाटर बॉडीज को यहां पे कंजर्व किया जा सकता है जो इस रीजन में अवेलेबल है रेत आने की वजह से यह खत्म हो जाती है हमेशा हमेशा के लिए लेकिन फॉरेस्टेशन की वजह से यहां पर यह काम हो पाएगा साथ-साथ गवर्नमेंट ऐसे नहीं कोई भी ऐसे ग्रीन बेल्ड बना रही है गवर्नमेंट ने कहा है कि वहां पर वो एग्री फॉरेस्ट्री को प्रमोट करेगी यानी फ्रूट्स वगैरह के पेड़ या दूसरे जो भी चीज बिक सकती है उसके पेड़।
पौधे लगाए जाएंगे ताकि वहां पे एंप्लॉयमेंट और इनकम सोर्सेस जनरेट हो पाए फूड सिक्योरिटी आसा है सोशल बेनिफिट्स भी हो इस प्रोजेक्ट को वैसे नाम दिया गया है नेशनल एक्शन प्लान टू कॉम्बैट डिजर्टिनो थ्रू फॉरेस्ट्री इंटरवेंशंस एंड एफ क्यू ऑन एग्रो फॉरेस्ट्री पब्लिश्ड बाय इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन बहुत बड़ा नाम है इसलिए मैंने अभी तक नहीं लिया था और अलग-अलग प्लांटेशन ड्राइव्स करते हुए इस बेल्ट को बनाया जाएगा ऐसा नहीं है कि कोई कांट्रैक्टर रख के जो है सीधा-सीधा काम किया जाए कुछ सेक्शंस में हो सकता है लेकिन पूरे के पूरे प्रोजेक्ट।
में नहीं यूएनएफ सीसीसी यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज इसको भी आप इस्तेमाल किया जाएगा यू एनसीसीडी यूनाइटेड नेशंस कंजर्वेशन टू कॉम्बैट डिसर्टिफिकेशन इनकी भी यहां पे मदद ली जाएगी ये एक लंबा प्रोजेक्ट है कई दशकों तक ये एक्संड करेगा और इसकी जो फीजिबिलिटी है ये आने वाले कई दशकों के बाद में पता चलेगी लेकिन ये एक ऐसा प्रोजेक्ट है अरावली ग्रीन बेल्ट जिसके बारे में आज ही हमें समझना जरूरी है और दुनिया भर में ऐसे प्रोजेक्ट्स हम होते हुए देखते ही रहेंगे आने वाले सालों में क्योंकि क्लाइमेट चेंज एक बड़ा इशू बन रही है उम्मीद करता हूं।