Chamkila Movie Review explained in Hindi 2024. Chamkila Movie Review in Hindi
Chamkila Movie Review in Hindi

एक आसान सा सवाल पूछूं आपसे एनिमल जैसी फिल्म जिसको दुनिया में हर किसी से गालियां पड़ी वह बॉक्स ऑफिस पे 900 करोड़ क्यों कमा लेती है। जितना सुनने में आसान लगता है, इस सवाल का जवाब देना उतना ही टेढ़ा मेढ़ा मुश्किल काम है। दो लाइन से बात नहीं बनेगी, दो घंटे की फिल्म देखनी पड़ेगी। गुरु चमकीला डायरेक्टली आपके घर आई है, कंटेंट ओटीटी पे रिलीज जरूर हुआ है, लेकिन थिएटर में आने वाली फिल्मों से कम समझने की गलती मत करना। एटम बॉम है सर, चमकीला और एनिमल दोनों में क्या कनेक्शन है, अभी तक वही सोच रहे हो ना। एनिमल सिफ फिल्म थी, लेकिन चमकीला ने उस जिंदगी को सच में ने जिया है।
रियल लाइफ रिव्यू से पहले एक छोटी सी वार्निंग: अगर आप उस टाइप के बॉलीवुड सिनेमा के कट्टर फैन हैं जहां मसाला, डांस, रोमांस के बिना पिक्चर नहीं बन सकती, तो भैया कृपा करके चमकीला जैसी फिल्म ना देखें। वरना थिएटर में जो बड़े मियां छोटे मियां मैदान का कलेक्शन थोड़ा बहुत आ भी रहा है, वो कुछ दिन बाद एकदम जीरो हो जाएगा। क्योंकि चमकीला जैसा कंटेंट एक बार देख लिया तो सिर्फ अच्छी फिल्में देखने का मन करेगा। नशा हो जाएगा, तुम्हें तो बॉस कहानी एक मोजे बनाने वाली फैक्ट्री से शुरू होती है।
चमकीला यहां पे मोजे सलता है, लेकिन दिमाग में उसके पूरे दिन सिर्फ म्यूजिक बजता है, लेकिन दिक्कत ये है कि ये म्यूजिक दुनिया को सुनाना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि दिमाग में बजने वाले गानों के लिरिक्स टोनी कक्कर नहीं, हनी सिंह स्टाइल हैं, वॉल्यूम वन जैसे मैंने बोला ना। एनिमल देखते सब हैं पर बताता कोई नहीं है, इसलिए चमकीला के लिखे हुए गानों पे कई सारे बड़े सिंगर सुपरस्टार बन जाते हैं। पैसों की बारिश बट कहानी में असली ट्विस्ट तब आता है जब चमकीला के हाथों में पेन की जगह पहली बार एक माइक आता है। सामने बैठी भीड़ उसको अपना भगवान बना लेती है। फिर भगवान की भक्ति शुरू सिर्फ चार-पांच गंदे गाने चमकीला को जमीन से आसमान तक ले जाते हैं।
पैसा नाम और घर वाली तीनों मिल जाते हैं, लेकिन प्यार और पागलपन के बीच सिर्फ एक सुई। जितना फर्क होता है। इसीलिए चमकीला के घर उसका एक सच्चा फैन हाथ में अपने बंदूक लेकर प्रकट होता है। फिर होता वो है जो किसी ने नहीं सोचा था। दूसरों के दिमाग को ठंडक देने वाला। चमकीला उसके खुद के दिमाग से गोली आरपार कर देते हैं और इसी सीन के साथ हमारी फिल्म शुरू होती है। क्या लगता है आपको। सिर्फ नाच गाना बजाना चमकीला की लाइफ कॉमेडी नहीं है। सर टोटल ट्रेजेडी है। लाल खून। फिल्म क्यों देखनी चाहिए। वो अभी तक आप समझ गए होंगे। चमकीला की जिंदगी किसी बड़े पर्दे वाले सिनेमा से कम थोड़ी है।
1 पर भी नहीं। सस्पेंस है। मिस्ट्री है। मामूली से खास बनने की असंभव कहानी। और एक खतरनाक आत्मा कपाने वाली एंडिंग। डर इसीलिए क्योंकि कहानी 100% असली है। क्यों हुआ ऐसा। असली फिल्म। फिल्म खत्म होने के बाद दिमाग में शुरू हो जाती है। घर बैठे-बैठे वो सब कुछ मिलेगा जो पब्लिक थिएटर में देखना चाहती है। बट एक बात ध्यान में रखने वाली जरूर है। अगर आप चमकीला के गाने कानों पे हाथ लगा के सुनते हो तो यह फिल्म भी आंखों से बिना परदे के देखना काफी मुश्किल होगा। टेंशन मत लो। एडल्ट सींस नहीं है। वल्गर कंटेंट नहीं है। लेकिन चमकीला जो बोलता है उसमें कोई फर्क भी नहीं है।
20 साल का लड़का या 70 साल की दादी, दोनों से एक जैसी बातें हैं। एकदम बिना फिल्टर का सिनेमा बनाया है। जिसमें कोई शर्म नहीं है। कोई सही गलत नहीं है। सिर्फ एंटरटेनमेंट है। ठीक चमकीला के गाने जैसा फिल्म आपको कुछ सिखाना नहीं चाहती। बदलना नहीं चाहती। आपकी सोच को सिर्फ 40 साल पीछे ले जाकर चमकीला के बगल में खड़ा करना चाहती है। लाइफ फील करो सब कुछ। अब जिस फिल्म के क्रिएटर ही इमतियाज अली हैं, जो ऑलरेडी रॉकस्टार जैसी फिल्म बना के इंडियन ऑडियंस को बचपन से जवान कर चुके हैं।
3 घंटे में 3 करोड़ दिल तोड़ना उनका कमबैक। कोई मामूली फिल्म के साथ थोड़ी होना था।
और दिमाग इतना लगाया कि थिएटर की जगह ओटीटी पे रिलीज कर दिया ताकि ज्यादा लोगों तक जल्दी फैल जाए। स्क्रीन पर ढाई घंटे। जो दिखाया है वो इतना ताकतवर है कि आप सारे एक्टर्स अलग-अलग फिल्मों में चमकीला का रोल कर सकते हैं। लेकिन खुद चमकीला भी कंफ्यूज हो जाए कहीं यह मैं तो नहीं। ऐसा काम किया है। दिलजीत पाजी ने इस फिल्म में। गल मत करो। इनको ही चमकीला मान लो। 19-20 का फर्क है। परिणति के साथ। इनके जो सींस हैं स्पेशली गाने वाले। वो ऐसा लगता है। कोई लाइव स्टेज परफॉर्मेंस देख रहे हैं हम। दोनों इतना रियल बना देते हैं। सब कुछ एक्टिंग डायरेक्शन दोनों बढ़िया है।
लेकिन चमकीला का एक्स फैक्टर है। इसका म्यूजिक। एआर रहमान। नाम तो सुना ही होगा। म्यूजिक अच्छा नहीं होता तो चमकीला एवरेज रह जाती। एक-एक गाने के लिरिक्स में इतना कंटेंट है जितने में 10 स्टोनी कक्कर और पांच बादशाह का पूरा करियर समाप्त हो जाएगा। लिरिक्स नहीं। आग का गोला है। दिलजीत पाजी का बेहतरीन इस्तेमाल। एक तो इमतियाज सर ने किया उनसे एक्टिंग करवा के। और दूसरा एआर रहमान ने उनकी आवाज को चमकीला के लेवल पे पहुंचा दिया। फिल्म में कुछ सींस को आर्ट के थ्रू भी दिखाया गया है। वो आईडिया जिसका था कमाल लगा। मुझे एनिमेटेड फिल्म भी होती तो भी तीर निशाने पे लगता।
चमकीला को मेरी तरफ से। पांच में से चार स्टार्स।
पहला फिल्म की एक्यूरेसी। मतलब इसके बाद कुछ पढ़ने सुनने की जरूरत नहीं है। चमकीला की लाइफ में पीएचडी। दूसरा फिल्म की शुरुआत एक मर्डर सीन के साथ। करना इमतियाज अली डायरेक्शन। पहले ही वर्न कर दिया। फिल्म को मजाक में मत लेना। बहुत सीरियस होने वाला है। तीसरा दिलजीत पाजी की करियर। बेस्ट परफॉर्मेंस। दिलजीत को चमकीला की वजह से नहीं। चमकीला को दिलजीत की वजह से याद रखेंगे लोग। और लास्ट वाला। फिल्म का म्यूजिक। गंदे अश्लील गाने। वो भी 40 साल पुराने। लेकिन सुनकर दिमाग फ्रेश हो जाए।
और मोहित चौहान का साडा हक वाला अंदाज। रिटर्न्स नेगेटिव में। मुझे लगता है। चमकीला के दो साइड होने चाहिए थे। सिर्फ अच्छा-अच्छा पॉजिटिव तो दिखा दिया। लेकिन एक ग्रे शेड जो एनिमल में फील हुआ। वो पार्ट मिसिंग था। सच बोलो। थोड़ा पक गए थे ना। मार धड़ एक्शन सिनेमा। बार-बार देखकर चमकीला देखो। बीड़ू दोबारा। तुमको सिनेमा से प्यार हो जाएगा। कोई ऐसा बंदा ढूंढ के ला दो। जिसको फिल्म अच्छी ना लगे।